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दुर्लभ स्वामित्व
वह जग मे पाता है
जो खुद को दमन
विकार मुक्त कर पाता है
वो ध्यानी बुद्ध ज्ञानी है
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नमामि बुद्धम
नमामि धम्म
नमामि संघ
साधु साधु साधु
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Yeha Buddha Dharm ka gyaan de rahe ho ya sanatan
Ответитьआख का संयम अच्छा है
कान का संयम अच्छा है
नाक का संयम अच्छा है
जिव्हा का संयम अच्छा है
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अच्छा कर जो कर्म करे
फल कुशल कहलाए
अच्छाई जो देखे आख
शुभ संयमित चित बनाए
कर्ण वाणी सुखकर सुने
मिश्री मधुरता मानव भाए
नाक सांस सुगंध ज्ञान फैलाए
संयम सांस कर्म जग ध्यान महकाए
स्थिर चित निर्वाणिक बन जाए
जिव्हा नियम ज्ञान बरसाए
जन जन जीवन सफल बनाए
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खेतो का दोष है तृण
मनुष्यो का दोष है इच्छा करना
इच्छा रहित मनुष्यो को दिया गया
दान महान फल देता है
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खेत धरा का तृण दोष है
इच्छा मानव मन का है दोष
उखङी इच्छाए जिस मानव मन
धम्म ज्ञानी वो संत बने
दान का फल सर्वश्रेष्ठ मिले
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खेतो का दोष है तृण
मनुष्यो का दोष है मोह
मोह रहित मनुष्यो को दिया
गया दान महान फल देता है
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दोष तृण है खेत का
जन्म दोष है जन मोह जगत का
मोह रहित जन को फलता पुन्य दान का
ज्ञान ध्यान भीतर शुन्य फलता निर्वाण का
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खेतो का दोष है तृण
मनुष्यो का दोष है द्वेष
इस लिए इच्छा रहित
मनुष्यो को दिया गया
दान महान फल देता है
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खलिहान दोष जो उपजे तृण
मानव दोष जो चित उपजे द्वेष तृष्णा
इच्छा विकार रहित हो जो मानव प्रज्ञावान
दान दिया जो उस को फल मिलता महान
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रोगी मनुष्यो मे रोग रहित होकर
हम सुख पूर्वक विहार करते है
रोगी मनुष्यो मे हम स्वस्थ रहकर
सुख पूर्वक विहार करत है
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रोगी मानव रोग रहित का सार है
अर्थ ज्ञान और अज्ञान से है
ज्ञानीजन संत निरोगी सुखपूर्वक जीते है
निरोगी वो बुद्धिमान मनुष्य है जो ध्यानरत है
वो निरोगी ज्ञानीजन तपस्वी संसार भव सागर
पार कर जाते है अथवा छूट जाते है वो मनुष्य
स्वस्थ है
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अज्ञानी अथवा मुर्ख दुख मे जीते है
जो रोग ग्रस्त है वो अज्ञानी है
सांसारिक कामनाओ मे ही रत रहते है
और कामनाओ के लिए ही दुखी जीवन
व्यतीत करते है संसार दुख से छूटने का
प्रयास ही नही करते वो अस्वस्थ है रोगी है
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राग के समान अग्नि नही
क्रोध के समान बल नही
मोह के समान दुख नही
राग क्रोध से बढ़कर कोई दुख नही
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क्रोध मल मानव बलवान
अनल जले अन्तर्मन
क्रोध जगाता जन अज्ञान
मानव जीवन हुआ विरान
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बैर कर ने वाले मनुष्यो मे
अबैरी रहकर सुख पूर्वक जीते है
जो मनुष्यो मे अबैरी बनकर विचरते है
वो मनुष्य सुख पूर्वक विहार करते है
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बैर अशान्ति और अज्ञान है
अबैर प्रतीक बुद्धिमानी है
बुद्धिमान मनुष्य शत्रुता मे
विचरण नही कर पाते
वे बैर और अबैर को समान
रूप मे देखते है
ध्यानस्थ वैराग्यवान सुख
पूर्वक विहार करते है
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I am not a Buddhist but I think, ki gyaan kabhi religious nhi hota. Mai buddh Ji ki baaton ko follow karne ka pran leti hun. Mai apne jiwan ko safal banana chahti hun. Logon ko khushiyan dena chahti hun. Mai is sansaar ko kuchh dena chahti hun apne karmo se.
Ответитьसंसार बुराई और कुरितियो का घर है
संसार मे प्रसंसा होना आवश्यक नही माना है
परंतु निन्दक और निन्दनिय सब है संसार
जो ना निन्दनिय है और ना वो निन्दक है
वो ध्यानी संत पथ है बुद्ध जगत सुधार
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राग और द्वेष एक ही
सिक्के के दो पहलु है
द्वेष को छोड दो तो
मोह बन जाता है
मोह को छोड दो तो
द्वेष बन जाता है
जो द्वेष और मोह दोनो
को छोड देता है वही संत
कहलाता है
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प्रिय से शोक उत्पन्न होता है
अप्रिय से भी शोक उत्पन्न होता है
जो प्रिय से मुक्त है उसे भय नही तो
शोक कहा से होगा
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प्रियो से राग ही दुख कारण है
अप्रियो से द्वेष ही दुख कारण है
जो प्रिय अप्रिय से मुक्त हुआ
उसे भय नही तो शोक भी नही हो
सकता
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इस लिए किसी को प्रिय न बनाए
उन के दिल मे गांठ नही होती
जिन के प्रिय अप्रिय नही होते
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जिन का संसार मे राग द्वेष नही होता
उन की चित ग्रंथी शुद्ध होती है उन मे
प्रिय अप्रिय का भेद मिट जाता है
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प्रियो का साथ मत करो
अप्रियो का साथ भी मत करो
प्रियो का दर्शन दुखद होता है
अप्रियो का दर्शन दुखद होता है
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प्रियो का राग मोह दुख देता है
अप्रियो का व्यवहार शत्रुता दुख देता है
प्रियो का दर्शन मोह राग वश दुखी करता है
अप्रियो का दर्शन इर्ष्या वश दुखी करता है
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अपने को उचित कार्य
मे न लगा अनुचित कार्य
मे लगा सदर्थ को छोड़कर
प्रिय के पिछे भाग ने को मान
योगी की सपरहा करनी चाहिए
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स्वम को उचित कार्य से हटाकर
अनुचित कार्य मे लगना एसा ही है
जैसे निर्वाणिक तपध्यानी ध्यान को
छोड़कर फिर संसारिक सम्बन्धो और
बंधनो की ओर दौङता है
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बुद्धिमान का संग एसा है
जैसे चन्द्रमा नक्षत्र पद
बदलता है
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मुर्ख का संग दुखकर मानो
जैसे कृष्ण पक्ष नक्षत्र का
दिनोंदिन बढता भयावह
अन्धकार है
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मुर्खो की संगति कर ने वाला
दीर्घकाल तक शोक करता है
मुर्ख की संगति शत्रु की संगति
तरह सदा दुखदाई होती है और
बुद्धिमानो की संगति बंधुओ की
तरह सुखदायक होती है
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मुर्खो की संगति शत्रु
की तरह दुखकर है
बुद्धिमान की संगत बन्धुओ
की भांति शुभ और ज्ञान
वर्धक ही होती है
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Book link please
Ответитьअप्रमाद के विषय मे उस की
इस विशेषता को जान आर्यो के
आचरण मे रत पंडित जन अप्रमाद
मे प्रशन्न होते है
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अप्रमाद की विशेषता और गुणो
को परखकर सज्जन व संत जन
ध्यान रत स्वच्छ आचरण कर के
प्रशन्न चित आनंदमय हो जाते है
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अमृत पद जीवन अप्रमाद
अप्रमाद जीवन अमर हुए जगत
मरण अन्त विष पान मृत्यु प्रमाद
प्रमाद नर्क द्वार राग द्वेष मरे हुए जगत
जिस का अन्त जन्म अमृत समान निर्वाण
बारम्बार जन्म मरण क्रम विष समान निर्माण
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मारा पीटा लुट लिया
मानव जो ना सोचा
मानव वो बैर मुक्त हुआ
उस जन का चित शान्त हुआ
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चित संवेदना बतलाती
क्रोध मोह राग विकार मन इठलाती
मारा पीटा और लुटा चित अशान्त कराती
सोच न जिसकी एसी जन्म क्रम छुट जाती
जो मानव ध्यानस्थ हुआ जग चक्र छुट जाती
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राग द्वेष मोह जाल जग माया
दुख चले जन पिछे ज्यो पहिया
धम्म ज्ञान सत्य आनंद संत लगे रुपया
सुख चले संतजन ज्यो पिछे मानव छाया
दुख हुआ जग चक्र चले जन्म का पहिया
सुख हुआ मानव का साथ न छोडे छाया
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प्रसन्नचित्त मानव अप्रमादी
विकरित मन मानव प्रमादी
अप्रमाद अमृत पद निर्वाण
प्रमाद अवगुण विष निर्माण
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आख जगत जंजाल अवगत कराए
अच्छा बुरा जगत प्रभाव दिखाए
जिव्हा मानव स्वादिष्ट भोज बताए
वाणी मधुकर और कटुता भी प्रकटाए
कर्ण मृदु और कटु वचन अह्सास कराए
धम्मानुसार ज्ञान भीतर स्थिर चित बनाए
अन्तर्ध्यान शुन्य अमृत सार निर्वाणिक हो जाए
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🙏🙏🙏
Ответить🌷🙏🙏🙏🌷
Ответитьमानव दोष प्राकृत इच्छा तृष्णा
खेत दोष उपजाए घास जीर्ण
इस लिए इच्छाओ और
तृष्णाओ से रहित मनुष्यो
को दान देना श्रेष्ठ फल देता है
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यहा भी संतप्त होता है
वहा भी संतप्त होता है
उभय लोक मे संतप्त होता है
मैने पाप किया है ये सोच संतप्त होता है
दुर्गति को प्राप्त कर और भी संतप्त होता है
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पाप कर्म संतप्त करता है
लोक प्रलोक उभय लोक
यहा वहा पाप कर्म विकार
के बारे मे सोचकर पश्चाताप
करता है दुर्गति को भोग कर
सदा संताप्ति रहता है
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इस लिए अपने को दीप बनाओ
पंडित मल रहित दोष रहित होकर
आर्य को प्राप्त करेगा
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आर्य वही है विद्वान
मल रहित दोष रहित बुद्धिमान
मनुष्य श्रेष्ठ सम हुआ ज्ञानवान
स्वम अपना दीप दिव्य बन प्रज्ञावान
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तेरी आयु समाप्त हो गई है
तु यम के पास आ पहुंचा है
तेरे रास्ते मे कोई निवास स्थान
भी नही है तेरे पास पाथेय भी नही है
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उम्र तेरी समाप्त हुई
जग जंजाल से गति हुई
यम खङा है आकर सामने
ना युक्ति ना निवास स्थान है बचने
ना राह है कोई ना पाथेय रहा अब रूकने
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इस लिए अपने को पंडित बनाओ
जल्दी से उद्योग बनाओ जगत मे अब
तेरा कुछ नही बचेगा तु जन्म और बुढापे के
बन्धन मे नही बंधेगा
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पाप के प्रति अनासक्त अभय हो जा
पाप का छय कर पंडित हो जा
पाप निर्लिप्त हो जा मल मुक्त हो जा
जन्म मरण बंधन से मुक्त हो जा
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समृतिमान उद्योग करते है
वे घर मे नही रहते तथा
आलस्य नही करते
जिस प्रकार हंस शुद्र
जलाशय को छोड देते है
उसी तरह वे घर को छोड़
देते है
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बुद्धिमान का ज्ञान कर्म
कुशल संचय कर तेज है
वे घर पर नही रहते हंसो
की तरह वे जल स्तर बढने
का इन्तजार नही करते जैसे
हंस छोटे जलाशय को छोड
देते है वैसे ही बुद्धिमान समय
का सदुपयोग करते है
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जिस का मार्ग समाप्त हो गया है
जो शोक मुक्त है जिस के विषय
विकार क्षीण हो गए है उन्हे कोई
संताप नही
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जो ध्यानस्थ होकर संसारिक
सम्बन्ध बन्धनो से मुक्त हुए
जीवन मे कोई संताप नही रहा
और निर्वाण के निकट है उन
की संसारिक यात्रा समाप्त हो
जाती है अथवा जन्म मरण
क्रम चक्र टुट गया है
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मुर्ख चित मल राग द्वेष लग जाए
सुमार्ग से भटकाय अज्ञान बढ़ाए
संताप पाप बढ़ाय अहित कर्म कराए
संत जन ध्यान लगाय चित शान्त हो जाए
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ОтветитьGreat
Ответитьजिसे जाल फैलाने वाली विषय तृष्णा
लोक मे कही भी ले जा सकती है
उस अपद अनन्त ज्ञानी बुद्ध को
तुम किस प्रकार अस्थिर कर सकोगे
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जगत जाल फैलाई तृष्णा
विषय विकार चित आई तृष्णा
अनन्त ज्ञानी बुद्ध ध्यान मिटाई तृष्णा
बुद्ध अपद ज्ञानी अस्थिर न कर पाई तृष्णा
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ज्ञान प्राप्ति एकान्त अकेले मे
तपकर पीऊ ज्ञान धम्म ही प्याले मे
धम्म से ही सिथगर हो जाऊ ज्ञान निवाले मे
निर्वाण स्थापित हो संत शिखर सतुप शिवाले मे
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यदि घर की छत मे छेद होने पर
जैसे घर के अंदर पानी आ जाता है
ऐसे ही संयम रहित चित मे राग प्रविष्ट
हो जाते है
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घर की छत मे छेद हो
जाने पर जैसे पानी
अन्दर प्रवेश कर जाता है
वैसे ही अशुद्ध असंयमित चित
मे राग द्वेष प्रविष्ट हो जाते है
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सार को असार और
असार को सार समझने वाले
कल्पत मनुष्य सार को प्राप्त करते है
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संत ध्यान सार को जानते है
मुढ असार को ही सार मानते है
सार असार मे अन्तर नही जानते है
साध कल्प संकल्प मिथ्या मानते है
सार असार संत जन सम ही जानते है
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गुण को अवगुण और
अवगुण को गुण समझकर
कल्पित सार व गुण को ही
प्राप्त करते है वास्तव मे नही
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जो मनुष्य गुण और
अवगुण की परख न करके
कार्य करते है वे व्यर्थ के संकल्पो
से ही भरे होते है अथवा मिथ्या
भाषी भी होते है
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ये जो तगर और कमल
की सुगंध है अल्प मात्र है
शील की उत्तम सुगंध
देवताओ की तरह है
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तगर और कमल की सुगंध
वातावरण को सुगंधित करती है
शील की सुगंध कमल
और तगर बढकर है
शील सुगंध देवताओ का
तप है जो जगत को महकाती है
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धम्म संगीताओ का
कितना ही पाठ करे
लेकिन प्रमाद वश उस
के अनुसार आचरण न करे
तो गाय गिनने वाले गोपालक
की तरह वो उस तत्व का भागीदार
नही होता
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केवल धम्म संगीताओ के
अनुसरण या अध्ययन से ही
ज्ञान की प्राप्ति हो जाए एसा
सोचना गोपालक द्वारा सिर्फ गाय
गिनने के ही समान है गुढ ज्ञान गुण
तत्व प्राप्त नही हो सकता
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धम्म संगीताओ का जो पालन करता
शुद्ध आचरण अन्तर्मन मे भरता
जीवन सुख कर्ता धम्म पाठ जो करता
धम्म संगीता ज्ञान ग्रहण है करता
प्रमाद विकार अवगुण जीवन है हटता
गोपालक के जैसे सार ज्ञान न वंचित रहता
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❤🌷🙏🙏🙏🌷♥️
ОтветитьSadhu sadhu sadhu🙏🙏🙏🌹🌹🌹🪷🪷🪷🌷🌷🌷
Ответитьप्रमाद मुक्त होकर ध्यान
करने से विपुल सुख
की शान्ति मिलती है
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मोह राग मन जब तक ना मिटे
प्रमाद मल चित ना हटे
अप्रमाद अमृत जीवन जगे
राग द्वेष मोह विकार कटे
ध्यान जगे जीवन चित
विपुल सुख मिले
जीवन शान्त बने
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सभी संस्कार सुख है
जब आदमी प्रज्ञा से
देखता है तभी संसार से
वैराग्य पैदा होता है यही
विशुद्धि का मार्ग है
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सुख संस्कार जन देखे प्रज्ञावान
वैराग्य उत्पन्न हो जन अन्तर्मन ध्यान
प्रज्ञा जगे अन्तर्ध्यान जगत मन छुटे वैराग्यवान
आत्मशुद्धि मार्ग है बुद्ध निर्वाण पथ महान
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प्रज्ञावान मनुष्य सुख संस्कार
को जब प्रज्ञा से देखता है तभी
वह मनुष्य वैराग्य तप ध्यान की
ओर पग रखता है यही है
बुद्ध ज्ञान आन्तरिक शुद्धि
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सभी मार बन्धन से मुक्त होंगे
जब आदमी इस बात को प्रज्ञा
से देखता है तभी उसे संसार से
वैराग्य होता है यही विशुद्धि का
मार्ग है
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सभी मार बन्धन मुक्त हो सकते है
जब बुद्धिमान ध्यानस्थ मनुष्य यह
विचार प्रज्ञावान होकर देखता है
तभी वह मनुष्य वैराग्य की
अनुभूति करता है ध्यानस्थ
होना ही अन्तःकरण शुद्धि है
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कृत्य तुम्हे ही करना है
तथागत तो केवल मार्ग
बताने वाले है विकार मुक्त
होकर ध्यान कर ने वाले मार
बन्धन से मुक्त होंगे
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ध्यान पथ जिस जन अपनाया
कर्म किया और निर्वाण भी पाया
तथागत बुद्ध जन जन राह निर्वाण दिखाया
ध्यान अमृत पद स्वम मार बन्धन मुक्त कराया
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इस मार्ग पर चलने से
तो दुख का अन्त होता है
इस मार्ग पर चलकर दुख का
अन्त कर सकोगे ये सब जान
कर मैने ये मार्ग गढा है
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बुद्ध ने जो ज्ञान मार्ग संसार को दिखाया
उस ज्ञान मार्ग पर चलकर जन जन के दुखो
का अन्त हो सकेंगा बुद्ध धम्म ज्ञान पथ पर
चलकर जन जन निर्वाणिक हो सकेंगे
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